Monday, December 6, 2010

मुक्त .............!


ब्राह्मन,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र..........
समाज का धर्म;
विवाह,वैराग्य...................
शरीर का धर्म ,
उससे ऊपर मैं आत्म !!

जो दिख जाये;
वो भगवान नहीं माया है,
जो दर्शन हो भगवान के;
वो हमारे ही प्रतिबिम्ब का साया है !!

मैं शरीर नहीं हूँ !
ये भावना जाये जिस वक्त;
उसी समय मुक्त !!!
जब एक तबायफ रही होती है नाच........!

जब एक तबायफ रही होती है नाच....................
सब उसकी वाहवाही करते हैं;
उसके जिस्म की नुमाइश करते हैं,
उसे देख कर लगता तो है जैसे....
कि बनी है वो कांच कि,
और कहते हैं ऐसे..........
नहीं आने दो इसे आंच भी !!


पर ये सब झूठ होता है......
उसके तन में नहीं,
मन में जख्म होता है..........
उसके जिस्म के नही ,
दिल के टुकड़े होते हैं हज़ार.........
जब जब लगता है,
उसकी नुमाइश का बाजार.........!!


और अब कांच को बन चुकी है,
टूटने कि आदत............
जख्म के साथ भी हँसना बन चूका है,
उसकी फितरत......... !!!

Saturday, December 4, 2010

बंधन...........................


एक व्यापारी गया अपने मुनीम के पास;
और कहा.............
कितना पैसा है मेरे पास ?
मुनीम बोला..............
चार पीढ़ीयों का गुजारा तो आराम से है,
व्यापारी बोला............
अच्छा ? पांचवी पीढ़ी का क्या होगा ?
मैं चलता हूँ !......मुझे और है कमाना !!

बंधन में हैं हम..............
पर अनुभूति नहीं;
दुखी है हम .........
पर मुक्ति की चाह नहीं !!

कभी दुखी होते...........
घरवालों से;
कभी दुखी होते............
अपने ही चेलों से !!

अर्थ और काम ;
इसको समझते दुःख का कारण,
पर असलियत में;
बेवकूफी, नासमझी है दुख का कारण !!

Friday, December 3, 2010

कितनी चिठियाँ आईं अब तक ?

हर किसी को स्वर्ग जाने की आस ;
पर कोई भी नहीं करना चाहता ............
तनिक भी मृत्यु का अहसास !

हर मानुष ;सिर्फ यही सोचता;
मैं अभी जीता ही रहूँगा;
मैं नहीं मरूँगा,
है किसी की मजाल;
कि उठाये सवाल,
हूँ मैं बिलकुल ठीक-ठाक;
नहीं बन सकता मैं खाक !!

पर ये इन्सान भूल जाता;
वो परम-परमवेश्वर तो चिठ्ठी भिजवाता हैं रहता ,
पहली चिठ्ठी : सफ़ेद हो जाते बाल;
दूसरी चिठ्ठी : आँखों से कम दिखता,
तीसरी चिठ्ठी : दांतों के बुरे हाल;
चौथी चिठ्ठी : कानों से कम सुनाई देता,
पांचवी चिठ्ठी : पिचक जाते शरीर और गाल;
छठी चिठ्ठी : चलना-फिरना हुआ बेहाल,
सातवीं चिठ्ठी : लो जी फिर गया काल !!!

Thursday, December 2, 2010

हिन्दूस्तान ! घोटालास्तान !!

आला ; 2जी घोटाला !
राजा ने इस्तीफा दे दिया;
फिर भी लोगों का मुंह ना सिला,
फिर की गयी प्रधान मंत्री से इस्तीफे की मांग....
क्या कसूर है उनका ?
कि पहले क्यों नहीं उनका माथा ठनका ?
उनका नहीं है इसमें हाथ;
उन्होंने नहीं दिया इस तुछ कार्य में साथ !!

आजकल विपक्ष को है बस एक ही काम;
चोबीस घंटे ले रहे बस जे पी सी का नाम,
कल रात सपने में आये भगवान साईं;
और कहा...........
मामले कुछ और ही दिखता है भाई,
इसमें देखा जा रहा जनता का फायदा;
या पार्टी का ही है कायदा,
है ये आम आदमी का मुद्दा ;
या फिर आम के फल का सौदा !!


क्या सही ? क्या नहीं ?
मुझे तो बस ये कहना .....
भावनाओं में नहीं बहना .........
रखे सब्र ...........
सी बी आई खोद रही है मुद्दे की एक-एक कब्र;
रखे विश्वास................
सुप्रीम कोर्ट ने दिखाई है आस !!!