Wednesday, October 31, 2012
Tuesday, October 30, 2012
गुफ्तगू
मैंने कहा-की हे ख़ुदा !
बिना मेहनत के मुकाम हासिल करा दे ...
वाजिब है मेरी चाह ....इस हसरत को मुकमल बना दे !!
खुदा बोला.....करा तो दूंगा !
खुदा बोला.....करा तो दूंगा !
पर तू ही है वो कम्बख्त.....जो मुझे तेरी ही चाह पूरा करने से रोकता है"
तेरी मंजिल पे तुझे पहुँचाने से रोकता है""
.....क्यूंकि कितना कुछ मैंने तुझे तेरे बिना चाहे ही दे दिया.....
.....और तब शुक्रिया करने का भी तूने फ़र्ज़ न अदा किया.....
और अब अच्छा लगता है जब तू दिन रात मेहनत करता है .....
कम से कम अब तो.....तू मुझे याद करता है !!
बिना मेहनत के मुकाम हासिल करा दे ...
वाजिब है मेरी चाह ....इस हसरत को मुकमल बना दे !!
खुदा बोला.....करा तो दूंगा !
खुदा बोला.....करा तो दूंगा !
पर तू ही है वो कम्बख्त.....जो मुझे तेरी ही चाह पूरा करने से रोकता है"
तेरी मंजिल पे तुझे पहुँचाने से रोकता है""
.....क्यूंकि कितना कुछ मैंने तुझे तेरे बिना चाहे ही दे दिया.....
.....और तब शुक्रिया करने का भी तूने फ़र्ज़ न अदा किया.....
और अब अच्छा लगता है जब तू दिन रात मेहनत करता है .....
कम से कम अब तो.....तू मुझे याद करता है !!
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