मैं .....शुद्र ?
हिन्दू धर्म में...........
वैदिक काल से ही जातियों को उदभव माना जाता ;
ऋग्वेद में .....
ब्राहमण , क्षत्रिय , वैशव व् शुद्र का उल्लेख मिलता !
व्यवस्था के आधार पर ...........
किया गया था कार्य विभाजन ;
पर इसमें तनिक भी नहीं था.....
कोई छुआछुत का प्रावधान !
एक ही मानुष की चार संतान .......
चारों ने संभाली अपने-अपने कर्म की कमान ;
दिन भर अपना कार्य करते ........
और फिर रात को एक साथ बैठ भोजन ग्रहण करते !
पता नहीं ..........
कब ? कैसे ?........आई ये भावना छुआछुत ;
हो गया ........
भाई-भाई प्रेम आहत !
"जन्मना जायते शूद्रः"........
अर्थात जन्म से सब होते हैं शुद्र ;
'मैं' या 'तुम' हो शुद्र ;कहना ये है अभद्र ,
कोई ,शुद्र देह से नहीं होता ;
समय बहता : देह बदलता ,
कल-चक्र चलता :शरीर बदलता ......
पर आत्मा में वो ही समानता !
आत्मा में है समानता !!
Ek Jandhar Post Likhi hai apne, aur aaj isi tarah ki soch ki jarurat hai.
ReplyDeletePurane jamane main jati bhed - bhav bilkul bhi nahi the,
Ek Shudra mahila ne Hastinapur ki neev rakhi thi ( Mallah ki beti)
दिन भर अपना कार्य करते ........
ReplyDeleteऔर फिर रात को एक साथ बैठ भोजन ग्रहण करते !