Monday, December 6, 2010

जब एक तबायफ रही होती है नाच........!

जब एक तबायफ रही होती है नाच....................
सब उसकी वाहवाही करते हैं;
उसके जिस्म की नुमाइश करते हैं,
उसे देख कर लगता तो है जैसे....
कि बनी है वो कांच कि,
और कहते हैं ऐसे..........
नहीं आने दो इसे आंच भी !!


पर ये सब झूठ होता है......
उसके तन में नहीं,
मन में जख्म होता है..........
उसके जिस्म के नही ,
दिल के टुकड़े होते हैं हज़ार.........
जब जब लगता है,
उसकी नुमाइश का बाजार.........!!


और अब कांच को बन चुकी है,
टूटने कि आदत............
जख्म के साथ भी हँसना बन चूका है,
उसकी फितरत......... !!!

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