Monday, December 6, 2010

मुक्त .............!


ब्राह्मन,क्षत्रिय,वैश्य,शुद्र..........
समाज का धर्म;
विवाह,वैराग्य...................
शरीर का धर्म ,
उससे ऊपर मैं आत्म !!

जो दिख जाये;
वो भगवान नहीं माया है,
जो दर्शन हो भगवान के;
वो हमारे ही प्रतिबिम्ब का साया है !!

मैं शरीर नहीं हूँ !
ये भावना जाये जिस वक्त;
उसी समय मुक्त !!!

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