Friday, July 10, 2009

इन्सान


आज का इन्सान क्यों है कमाता ?
भरना है मुछे अपना पेट ,
ये है कहता ;
क्या ये सच है ?


पेट भरने के लिए तो ,
हजारों भी है ज्यादा ;
लाखो भी उसे कम लगते ,
करोड़ों की वो ख्वाहिश रखता ;
क्या ये ठीक है ?


अपना रुतबा बढ़ाने ,
ओरो को निचा दिखाने ;
करता रहता है इंसान......... ,
काम ही काम ;अविराम !


इसे कशमकश में ,
उस परम परमात्मा के लिए तो .........
उसे समय ही नही मिलता ;
अपनी आत्मा को भी .........
इंसान भूल है जाता !!



क्या इसलिए ;
इंसान है कमाता !!!

कुछ नही........................

कुछ नही........................

"किसी को मुकमल जहाँ नही मिलता ,
किसी को जमीं ;किसी को आसमान नही मिलता !

सच ये लोकोक्ति ..........
पर दोहराता इसे इंसान जब हो जाती उसकी अति !!


दिखता है उसे कुँआ पीछे ;खाई आगे ,
जब उसके सब यार दोस्त उसे छोड़ के भागे !

लगता है उसे सब जगह पानी ही पानी ,
जब उसने अपनी असली औकात जानी !!


अंत मैं होता है एक अहसास ,
नही बची कोई आस !

जो करना होगा ,सवंयम करना होगा ....!!
जो करना होगा ,सवंयम करना होगा ....!!

माँ.......................................

"माँ.............. ममता की मूरत ,प्यार की सूरत !"


"माँ ...........
जो कर अपनी जरुरतो को दरकिनार ..........
लाती है उसके के लिए खिलौना,
जिसे वो करती बेहद प्यार !"
"माँ ...............
ममता की मूरत ,प्यार की सूरत !''



''माँ .............
जो जी सकती है कमियों के अम्बार में ...........
ताकि दे सके सच्चा योगदान ;
अपने बच्चे के भविष्य के सवांर में !''
"माँ ...............ममता की मूरत ,प्यार की सूरत !''



''अंत में उसी माँ का एक अंश ;
कहना चाहती है इतना .................
माँ का कहना हमेशा कहना सुनना ;
माँ का हमेशा आदर करना ;
माँ है तो सब कुछ है .............
माँ नही तो कुछ भी नही..........!!
"

Thursday, July 9, 2009

मेरी जन्म भूमि का धार्मिक अस्तित्व...........

मेरा परिचय ............
"
मेरा नाम प्रीती मंडयाल है !मैं हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से शहर मण्डी से संबन्ध रखती हूँ !"

मेरा शहर ......................
"
मण्डी को छोटी काशी के नाम जाना जाता है ! काशी का मतलब होता है किसी भी चीज की मात्रा 81 होना....... और क्यूंकि मण्डी में 1 कम 80 मन्दिर है तो इसे काशी तो नही पर हाँ ....छोटी काशी जरुर कहा जाता है ......!!''

मेरे शहर की छोटी काशी बनने के पीछे धार्मिक कारण /राज .................
"
इसे छोटी काशी बनाने के पिछे जिन 80 मन्दिरों का हाथ है वो पांडवो ने अपने गुप्त वनवास के दौरान बनाये थे .....पांडव एक मंदिर एक ही रात को बना देते थे ........क्यूंकि वो बेहद बलशाली थे ........और चाह कर भी दिन को कोई भी काम नही करते थे ......क्युकी तब वो अज्ञातवास में थे ........और अगर उन्हें कोई देख लेता तो उन्हें फिर से दुबारा कई सालों के लिए अज्ञातवास के लिए जाना पड़ता .......... और जब वो 81 वां मन्दिर बनाने लगे ...तो उनको वहां से भागना पड़ा क्यूंकि मन्दिर बनाते - बनाते उन्हें सुबह हो गई थी .........इसलिए ख़ुद को छुपाने के लिए उन्हें वहाँ से जाना पड़ा ........तथा 81 वें मन्दिर का काम अधुरा ही रह गया और पांडव इस मन्दिर को चाह कर भी पुरा नही कर पाये ............."

"इस प्रकार पांडवों के द्वारा बनाये गए 80 मन्दिरों से मण्डी छोटीकाशी तो बन गई पर सम्पूर्णकाशी नही बन पायी ............."

Wednesday, July 8, 2009

कुछ नही ........................

"किसी को मुकमल जहाँ नही मिलता ,
किसी को जमीं ;किसी को आसमान नही मिलता ,
सच ये लोकोक्ति ..........
पर दोहराता इसे इंसान जब हो जाती उसकी अति !
दिखता है उसे कुँआ
पीछे ;खाई आगे ,
जब उसके सब यार दोस्त उसे छोड़ के भागे ;
लगता है उसे सब जगह पानी ही पानी ,
जब उसके सब यार दोस्त उसे छोड़ के भागे !!
अंत मैं होता है एक अहसास ,
नही बची कोई आस ,
जो करना होगा ,सवंयम करना होगा ....!!!

Tuesday, July 7, 2009

क्या यही प्यार है........................................

"'उसके मन में थी एक छवि,
जिसने बना दिया उसे कवि ,
उसके मन की ये छवि उसके पड़ोस में
रहती थी,
और एक बार भी दिख जाती ,
तो हो जाता कवि का मन सुखी ,
क्यूँकि उसका नाम ही नही वो ख़ुद भी थी चन्द्रमुखी .........................!
करता था वो उससे बेहद प्यार ,
और लगता था उसे , नही कर पाएगी वो भी इंकार,
जब वो करेगा उससे अपने प्यार का इजहार........................................!!
और एक दिन मौका पाते ,
जब किया उसने चंद्रमुखी से किया अपने प्यार का इजहार,
तो चंद्रमुखी कुछ यूँ बोली......
क्या हो तम ? क्या है तुम्हारी ओकत ?
कि ले केर गए बड़े अपनी प्यार की सौगात .....................................!
इस पैर बिचारे कवि का दिल टुटा ,
मनो निर्धन का धन लुटा,
इस पर कवि ने ये ठानी ,
याद दिलानी पड़ेगी ख़ुद को ही नानी !!
बड़े-बड़े पोथे क्या पड़ने शुरू किए,
बाये चांस बाये लक प्रशासनिक सेवा में भी चुन लिए गए ;
एक कवि बना है प्रशास्न्धिकारी .........
ये बात आग की तरह फेली .........................!
और इस पर वो भी पहुँची.....
प्रशास्न्धिकारी के पास................
जिसका नाम था चंद्रमुखी ......................
ताकि कर सके अपना जीवन सुखी ............................!!
पर आज ,इस पर;
एक प्रशास्न्धिकारी कुछ यूँ बोले..........
कि क्या-क्या पढ़ा आज तक उसके राज पट-पट खोले ........................
कैसे हम करले तुमको स्वीकार आज ,
हम यहाँ पर पहुंचे ...............
इसके पीछे है एक बहुत बड़ा और गहरा राज . ... अरे हम तो एक शिष्य है
और तुम ही तो हो हमारी गुरु महाराज..........."'