Monday, March 14, 2011

"स्मृति ,स्वभाव ,कर्म "

"स्मृति ,स्वभाव ,कर्म "


भगवत गीता में ..
अर्जुन , भगवान श्रीकृषण से है कहते...
मेरी स्मृति आई है लौट;
जान चूका हूँ मैं कि कहाँ था खोट,
पहले था अभाव..
पर अब मैं जान चूका मेरा असली स्वभाव !

ज्ञानी होने का,ज्ञान में रहने का मतलब यह नहीं;
कि भूल जाये,अपना मूल स्वभाव जो है सदेव सही,
ज्ञान ............
अर्थात ; मस्तिष्क में सब सही ; सब सही स्थान !!


स्मृति आशीर्वाद है एक;
दोस्त एक पक्की,मूल बराबर अनेक,
स्मृति लाती है -अच्छाई;भलाई;स्वभाव स्वतंत्र;
चाहे कितना ह़ी जटिल तंत्र,
पर स्मृति तब गतिरोधक हो जाती;
जब सिर्फ अच्छी या बुरी;इसमें फंस जाती !

अच्छी बाते.....
पुरानी इच्छा;पुरानी प्रतिस्पर्धा लाती;
और कोई नयी चीज आ नहीं पाती,
बुरी बाते....
रोक देती काबिलियत हमारी;
शक करते हम इस पर..
लग जाता विराम जगह सारी !!

यानि अच्छा ;बुरा जाओ भूल;
याद रख अपना स्वभाव मूल,
जो है...कर्म करते जाना ..
सिर्फ...कर्म करते जाना !!!

No comments:

Post a Comment