ख़ुशी का शिखर;दुःख की गहराई
जब जो चाहते,वो पाते....
तो बेहद खुश हो जाते,
ख़ुशी के शिखर पर पहुँच जाते.......
और जब;नापसंद की होती बात....
तो मानो आ गया काल आपात ;
दुःख की गहराई में धंसते चले जाते...........!!
ये है उसकी बात;
मानुष एक आम,
पर आत्मज्ञानी ऐसा नहीं होता
वो सब;सुख-दुःख एक साथ अपनी झोली में लेकर चलता !!
मानो गए बाजार......
लेकर आये ढेर सारा फलाहार;
फिर एक संतरा लिया......
छिल्का उतारा और खाया ;
पर ये क्या..पैसे तो दोनों के थे दिए....
संतरा;साथ छिल्का लिए हुए...
पर काम कुछ आया;कुछ नहीं ....
तो क्या फिर दोनों के पैसे देने थे सही ?
हाँ ये था सही !
"संतरा;छिल्का -सुख;दुःख ".......हैं एक समान;
एक दुसरे के पूरक;पुरे.....
एक दुसरे बिना अधूरे........
एक ने दुसरे से अस्तित्व पाया.....
यही है सांसारिक मोह-माया ......
सांसारिक मोह माया !!!
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