इन्सान
आज का इन्सान क्यों है कमाता ?भरना है मुछे अपना पेट ,
ये है कहता ;
क्या ये सच है ?पेट भरने के लिए तो ,
हजारों भी है ज्यादा ;
लाखो भी उसे कम लगते ,
करोड़ों की वो ख्वाहिश रखता ;
क्या ये ठीक है ?अपना रुतबा बढ़ाने ,
ओरो को निचा दिखाने ;
करता रहता है इंसान......... ,
काम ही काम ;अविराम !इसे कशमकश में ,उस परम परमात्मा के लिए तो .........उसे समय ही नही मिलता ;
अपनी आत्मा को भी .........
इंसान भूल है जाता !!क्या इसलिए ;
इंसान है कमाता !!!
"wow what a great composion "
ReplyDeletebahut bahut dhanyabad .........
ReplyDeletemuche khushi hai aapko meri poem ki composition pasand aayi.......