Friday, July 10, 2009

इन्सान


आज का इन्सान क्यों है कमाता ?
भरना है मुछे अपना पेट ,
ये है कहता ;
क्या ये सच है ?


पेट भरने के लिए तो ,
हजारों भी है ज्यादा ;
लाखो भी उसे कम लगते ,
करोड़ों की वो ख्वाहिश रखता ;
क्या ये ठीक है ?


अपना रुतबा बढ़ाने ,
ओरो को निचा दिखाने ;
करता रहता है इंसान......... ,
काम ही काम ;अविराम !


इसे कशमकश में ,
उस परम परमात्मा के लिए तो .........
उसे समय ही नही मिलता ;
अपनी आत्मा को भी .........
इंसान भूल है जाता !!



क्या इसलिए ;
इंसान है कमाता !!!

2 comments:

  1. "wow what a great composion "

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  2. bahut bahut dhanyabad .........



    muche khushi hai aapko meri poem ki composition pasand aayi.......

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